हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,ग़ज़्ज़ा पट्टी में भारी बारिश और बाढ़ की वजह से जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। बाढ़ का पानी हजारों झोपड़ियों को डुबा चुका है, जिससे स्थानीय परिवार ठंड में खुले आसमान के नीचे जीने के लिए मजबूर हैं मीडिया रिपोर्टों के अनुसार ग़ाज़ा की लगभग 20 लाख आबादी में से बड़ी संख्या अपने घरों से बेघर हो चुकी है। ग़ाज़ा पट्टी सर्दियों के आगमन के साथ ही आतंकित है।
एक झोपड़ी के अंदर, गीली मिट्टी पर रखे फटे पर्दे के पीछे, एक मां अपने बच्चों के कांपते शरीर को समेटती है। हजारों मांओं को बारिश की हर बूंद के साथ अपनी हताशा दिखाई देती है।
झोपड़ी की पुरानी चादर जब ठंडी हवा में कांपती है तो मां का दिल भी उसके साथ थरथराता है। बारिश अंदर टपकती है, कपड़े, बिस्तर, बर्तन और जिंदगी सब भीग जाते हैं। बच्चे जो कभी बारिश में खेलते थे, अब इसकी बूँदें सुनते ही मां की गोद में डरकर छिप जाते हैं।
ग़ज़्ज़ा की गलियाँ, जो कभी बारिश के बाद मिट्टी की खुशबू से महकती थीं, अब केवल कीचड़ से भरे रास्ते हैं, जिन पर कदम रखना भी कठिन है। झोपड़ियों के बाहर हर ओर गंदगी, पानी, मलबा और ठंड का बेरहम मिश्रण है। सर्दी ने जैसे घोषणा कर दी हो कि युद्ध के घाव अभी भर नहीं पाए हैं, बल्कि एक नया दर्द उन पर नमक छिड़कने को तैयार है।
ग़ज़्ज़ा के बेघर बच्चे, महिलाएं और बुजुर्गों के लिए बारिश की पहली बूंद एक नए घेरे की शुरुआत होती है। रातें सबसे डरावनी होती हैं। कीचड़ में धंसी झोपड़ी में बैठे परिवार अपनी टिमटिमाती मोमबत्ती बुझने से पहले ही डर के साये में सोचते हैं कि अगर बारिश तेज़ हो गई तो क्या झोपड़ी उनका साथ दे पाएगी? क्या पानी अंदर घुसकर बच्चों के पैरों तक पहुँच जाएगा? क्या यह रात भी जागकर बितानी होगी?
यह सिर्फ मौसम नहीं है, यह एक युद्ध है। एक ऐसा युद्ध जिसमें दुश्मन की जगह हवा लेती है, बारिश लेती है, ठंडी रात लेती है। और झोपड़ी एक ऐसे मोर्चे पर खड़ी है जहाँ वह केवल हार का सामना कर सकती
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